तू बस हाथ बढ़ा  RAHUL MAHARSHI

तू बस हाथ बढ़ा

RAHUL MAHARSHI

छिन गया तुझसे वो जो था बेहद कीमती,
हाँ तूने बहुत कुछ खोया है।
पर तू देख बेपत्ता खड़े इन पेड़ों को,
पतझड़ की मार से क्या बाग़ भी कभी रोया है?
कयूँ है तू यूँ ग़मगीन पड़ा?
देख मोड़ पे है बसंत खड़ा।
बगिया में फिर से हरियाली छाएगी,
जीवन में लौट के खुशहाली आएगी।
तू बस हाथ बढ़ा, इशारे से उसे अपने पास बुला,
तू बस हाथ बढ़ा।
 

कभी-कभी कुछ घटनाएँ जनती हैं नीरसता इस जीवन में,
मैं समझता हूँ तू यूँ ही नहीं ऊब गया।
पर तू सोच उतरते हुए सूरज की,
क्या वो विरक्त हुआ कि हर साँझ के साथ डूब गया?
क्यों है तू यूँ उदासीन पड़ा?
देख क्षितिज पे है सवेरा खड़ा।
दायरे में फिर से लालिमा छाएगी,
जीवन में लौट के रौशनी आएगी।
तू बस हाथ बढ़ा, मुट्ठी में भर ले ज़रा,
तू बस हाथ बढ़ा।
 

मना करूँ या भागूँ, ये भाव व्याकुल तुझे बनाते हैं,
हाँ तेरी ज़िन्दगी के ज़ख्मों ने पैदा की उत्कंठा।
पर तू सुन कड़कड़ाते इस बादल का गर्जन,
या तो गले, या जले, क्या सुनाई दी इसकी दहाड़ में चिंता?
क्यों है तू यूँ बेचैन बड़ा?
देख वज्र के आगे इंद्रधनुष अड़ा।
धुंधलेपन की स्याही मन से मिट जाएगी,
जीवन में लौट के बेफिक्री आएगी।
तू बस हाथ बढ़ा, रुमाल से स्लेट मिटा,
तू बस हाथ बढ़ा।
 

निराशा का कैदी बना, निरुत्साह और लाचारी हैं साथी,
मैं देखता हूँ ऐसा विकार तेरे मन में।
पर तू विचार, कैसे बनती ये निर्झर धारा?
सौम्य घसे, कठोर बुने, बदले प्रपात चुनौती अवसर में।
क्यों है तू यूँ आशाहीन खड़ा?
देख पाषाण पे है जल ओज पड़ा।
दासत्व की शिलाएँ कभी तो डगमगाएँगी,
जीवन में लौट के आशाएँ आएँगी।
तू बस हाथ बढ़ा, इन पत्थरों को सजा,
तू बस हाथ बढ़ा।
 

मादकता ने जकड़ा तुझे, आत्मगौरव हुआ तार-तार,
हाँ चाप पड़ा तुझपे, नशे में हुआ और मायूस।
पर तू समझ, आघात अब भी ना रुकेगा,
अल्पकालीन सुख मिले, पर दर्द फिर भी होगा महसूस।
क्यों है तू यूँ शिथिल पड़ा?
देख कनक के आगे पूरा संसार खड़ा।
मृगतृष्णा न तेरे लक्ष्य साधायेगी,
जीवन में लौट के चेतना आएगी।
तू बस हाथ बढ़ा, आध्यात्म जगा।
तू बस हाथ बढ़ा।
 

पीर ग्रसे तुझे अविरल, पराकाष्ठा सीमाएँ नई बनाती है,
मैं जानता हूँ ये रोग तेरे मनोबल को डिगाता है।
पर तू दोहरा कहानी गरुड़ के कायाकल्प की,
अथाह दर्द का आलिंगन कर, नव चोंच-नख, नया जन्म पा जाता है।
क्यों है तू यूँ असमर्थ पड़ा?
देख नए पंख लिए फिर से पक्षी उड़ा।
तेरी आत्मशक्ति हर मर्ज़ को हराएगी,
जीवन में लौट के निरोगिता आएगी।
तू बस हाथ बढ़ा, दर्द को अपना मीत बना,
तू बस हाथ बढ़ा।
 

विषाद का अन्धकार घिरा, दिशा नहीं दिखती तुझे कोई,
हाँ पिहरवा से वियोग हुआ, हाँ शोक तेरे जीवन में छाया है।
पर तू बता क्या इस धरा पे नहीं धरा हरी ने तेरे जैसा रूप?
सीता बिन राम, राधा बिन श्याम, हर युग में विरह की माया है।
क्यों है तू यूँ बेड़ियों में जकड़ा?
देख मोह भार न ढोए बैकुंठ का छकड़ा।
आत्म में परमात्म की अलख जग जाएगी।
जीवन में लौट के दिव्यता आएगी।
तू बस हाथ बढ़ा, दीपक फिर से जला,
तू बस हाथ बढ़ा।

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