बीते पल अंजना कुमारी झा
बीते पल
अंजना कुमारी झाचलो बीते हुए पलों को
आज फिर से जी लेते हैं,
साथ बैठ कर सभी के
फिर से चाय पी लेते हैं।
उन पलों में पूरी ज़िन्दगी
जिया करते थे,
जब दोस्तों के साथ बैठ
सारे गम पिया करते थे।
घंटों टीवी पर धारावाहिक चलता था,
तो पापा की डांट पर
किताबों का पन्ना पलटता था।
भाई-बहनों की गोष्ठी का
अपना ही टशन था,
तो रात में ताश के साथ
चाय का अपना ही जश्न था।
सुबह निकल रात लौटा करते थे,
तो पापा के डर से
रास्ते भर कांपा करते थे।
उफ़ क्या कहें!
वो पल भी क्या पल थे
जब गर्मी की छुट्टी में
ननिहाल-ददिहाल जाया करते थे
और नानी-दादी के हाथ से
मालपुआ खाया करते थे।
बेफिक्र हो बड़ी चौड़ में
कॉलोनी घूमा करते थे,
क्योंकि उस वक़्त रावण
खुले आम ना घूमा करते थे।
खाली रास्तों पर
गुल्ली-डंडा खेला करते थे,
तो सखियों के साथ
घर-घर खेला करते थे।
चलो बीते हुए पलों को
आज फिर से जी लेते हैं,
साथ बैठ कर सभी के
फिर से चाय पी लेते हैं।