दोस्ती रोशन "अनुनाद"
दोस्ती
रोशन "अनुनाद"जिस दोस्ती पर नाज़ है मुझको,
उस पर, थोड़ा पर शक़ जरूर है।
मेरे हमदर्द का बेदर्द चेहरा,
धुंधला सही पर, देखा ज़रूर है।
उनकी किताब में हैं सुर्ख़ चमकदार पन्ने,
पर काली स्याही के, दाग भी ज़रूर हैं।
इल्म उनको भी है मैं जानता हूँ ये सब,
पर वो आदत से मज़बूर हैं।
यही सोचकर निभाया है ताउम्र,
कि ये दुनिया का दस्तूर है।
शायद इसीलिए मेरे दोस्त,
दोस्ती कायम है, बदस्तूर है।