गुलिस्ताँ Surya Pratap Singh
गुलिस्ताँ
Surya Pratap Singhबाग से रिश्ता न तोड़ना कभी बागबाँ,
बाग ही मुफलिसी में सहारा बनेगा।
गर सलामत न रहा बाग ही तो सोचो,
सर छुपाने को आखिर कहाँ जाओगे।
लकीरें दरम्यान में खींचने को बेताब है जमाना,
निश्छ्ल मन से सदा सबांद की गुंजाईश रखो।
स्वार्थ को त्यागकर कोशिशें सब करो,
दूर कर लो यदि दरम्यान में हो गलतफहमियाँ।
दे वाणी को अकुंश करो ऐहतराम सदा,
हटने न दो घूँघट सबके परवाह की।
यूँ गाहे-बगाहे मुलाकात करते रहो,
दूरियाँ दिलों के दरमियां आने न दो।
धुआँ-धुआँ सी है ज़िन्दगी इक चिराग जलाए रखिए,
बेवजह ही सही दिलों पर दस्तक देते रहिए।
कुछ समय यदि खर्च हो भी जाए तो क्या,
आप भी आइए और हमको भी बुलाते रहिए।