यादें  Geetika Saxena

यादें

Geetika Saxena

जब भी मैं ससुराल से मायके आती हूँ,
अपना आधा कुछ वहीं छोड़ आती हूँ।
 

एक हाथ जिसने किया है वादा
उम्रभर देने का साथ,
कुछ कसमें, कुछ वादे,
कुछ कच्चे कुछ पक्के इरादे।
 

कुछ सिलसिले बातों के
कुछ किस्से रातों के,
कुछ सिलवटें कुछ करवटें
कुछ हँसना कुछ खिलखिलाना।
 

कुछ रूठना कुछ सताना
कुछ मनाना कुछ मान जाना,
और कुछ साथ बिताए हुए लम्हे खास...
 

जब भी मैं ससुराल से मायके आती हूँ
तू तो नहीं पर तेरी याद आती है साथ,
मुझको वापस बुलाने को रोज़ देती है आवाज़...
और फ़िर
जब मैं मायके से ससुराल आती हूँ,
अपना आधा कुछ वहीं छोड़ आती हूँ।
 

एक हाथ जिसने किया है वादा
रखने का अपनी छाँव में सदा अपने साथ,
कुछ किस्से बचपन के कुछ मेरे लड़कपन के।
 

कुछ खेल कुछ खिलौने
कुछ पुराने ख्वाब सलोने,
कुछ शैतानियाँ कुछ नादानियाँ
कुछ मेरे वजूद की निशानियाँ।
 

कुछ मनमानियाँ कुछ आज़ादियाँ
कुछ रिश्ते खून के कुछ रिश्ते सुकून के,
कुछ पिता का लाड़ कुछ माँ का दुलार
और कुछ जन्म से विदाई के लम्हे खास...
 

जब भी मैं मायके से ससुराल जाती हूँ
छोड़ जाती हूँ दो लोग लगाए हुए आस
कि बिटियारानी जल्दी ही लौटकर
फिर आयेगी उनके पास...
 

बेटियों की ज़िंदगी भी बड़ी निराली है
कुछ छोड़ जाती हैं कुछ पा जाती हैं,
इधर पिता के घर की राजकुमारी
उधर पति के घर की रानी कहलाती हैं।

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