अधर्म : धर्म युग का  Deeksha Dwivedi

अधर्म : धर्म युग का

Deeksha Dwivedi

धृतराष्ट्र से तात ना मिले किसी को
ना दुर्योधन सा कुटुम्ब में कोई होए,
महाभारत के युग जैसा धर्म
ना अब जग में कोई संजोए।।
 

जिस राज्यसभा में युधिष्ठिर ने
बस अपना धर्म संभाला,
पर क्या क्या थे वो गंवा रहे
क्यों अंतर्मन ना समय पे खंगाला,
देखो धर्म की आड़ में प्रपंचियों ने,
अधर्म के कितने बीज थे बोए।
महाभारत के युग सा धर्म
ना अब जग में कोई संजोए।।
 

उस राज्यसभा में पांचाली के
वो पाँच पति शक्तिमान भी थे,
गुरु द्रोण भी थे, काका विधुर भी थे,
पितामह भीष्म के जैसे महान भी थे,
पर एक अंधे राजा की सत्ता में
बैठे सब दृष्टि खोए।
महाभारत के युग जैसा धर्म
ना अब जग में कोई संजोए।।
 

समग्र जीवन को तपस्या बनाने का
ये परिणाम मिला था द्रोपदी को,
जिस घर में लक्ष्मी बनके आईं
उसी आँगन में,
अपमान मिला था द्रोपदी को,
सहस्र अधर्मियों भरे उस प्रांगण में
यज्ञसैनी भला कब तक ना संयम खोए।
महाभारत के युग जैसा धर्म
ना अब जग में कोई संजोए।।
 

सबसे विश्वास था टूट चुका
बस गोविंद का ही अब सहारा है,
इस चीर-हरण से बचाओ तुम्हीं
सुनो सखी ने तुम्हें पुकारा है,
जिसका तन-मन लिपटा हो कृष्णा-भक्ति में
उसके वस्त्र की भला क्या सीमा होए।
महाभारत के युग जैसा धर्म
ना अब जग में कोई संजोए।।
 

धृतराष्ट्र से तात ना मिले किसी को
ना दुर्योधन सा कुटुम्ब में कोई होए,
महाभारत के युग जैसा धर्म
ना अब जग में कोई संजोए।।

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