अफसोस  Vineeta Verma

अफसोस

Vineeta Verma

अफसोस होता है मुझे कि उनको अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाया,
कि उन्हें अपने दिल का हर किस्सा सुनाया।
 

कि उन्हें ख्वाबों से दूर हकीकत में सजाया,
कि जमाने से दूर छिपाकर अपने दिल में बसाया।
 

कि खुद को इस कदर मजबूर कर लिया मैंने,
कि आँखें बंद हो या खली चेहरा सिर्फ उसी का नज़र आया।
 

कि आज उलझन में हूँ कुछ इस कदर कि तेरे साथ होने का,
जिक्र करूँ किसी से या तेरे जाने का अफसोस।
 

कि अक्सर तेरी बातों को याद कर मुस्कुरा दिन तो काट लिया करती हूँ,
कि रात की गहराई में फिर सिकुड़ जाते हैं ये लब हर रोज।
 

कि वो कहता था मैं नहीं औरों जैसा कद्र करता हूँ तेरी,
कि मैं भी सुन शरमा दिया करती थी माँगी मुराद हो तुम मेरी।
 

कि जब भी तन्हा सी हो उसके कंधे पर सर रखती थी,
कि वो सर सहला दिया करता माथे को चूम दिल बहला दिया करता था।
 

कि वह मेरी फिक्र कुछ इस कदर दिखा दिया करता था,
कोई और छू ना ले मुझे उसे दूर से ही हटा दिया करता था।
 

कि मोहब्बत कम नहीं थी उसकी,
कि गुस्से से देख आँखों से समझा दिया करता था।
 

कि समझ नहीं आता अब मुझे तेरे संग बीते लम्हों
की नुमाइश करूँ कि तेरे जाने का अफसोस।

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