मेरी जिन्दगी में आने का शुक्रिया  ARUN KUMAR SHASTRI

मेरी जिन्दगी में आने का शुक्रिया

ARUN KUMAR SHASTRI

मेरी ज़िन्दगी में आने का शुक्रिया,
मुझको अपना बनाने का शुक्रिया,
मेरे दर्द को अपना समझ कर
मामूल पर लाने का शुक्रिया।
 

शुक्रिया कह-कह कर
जुबान मेरी न थकेगी कभी,
इस अजनबी को इंसानियत की
हर तहजीब सिखाने का शुक्रिया।
 

ऐ सखी तेरे हर जज्बात ने मुझको भिगो दिया,
मैं तो सूखा प्रस्तर था सहरा का,
हरित उपजाऊ अरण्य बागवाँ बना दिया,
शब्द मेरी लेखनी का चिंता से चिंतन हो गया,
तुम आई हो जबसे ये घर मन्दिर हो गया।
देवी हो तुम इस सदन की मैं पुजारी हो गया,
मेरी जिन्दगी में आने का शुक्रिया,
मुझको अपना बनाने का शुक्रिया।
 

एक था मैं जन्मों-जन्म से शज़र सूखे ठूँठ सा,
छू के इस सूखे शजर को हरित चहचहाहट से भर दिया,
अणु-अणु झंकृत हुआ गुनगुनाने हूँ लगा,
साँस-साँस के लिए प्राण का आभार हूँ कहने लगा।
 

रचयिता के आशीष को पा मैं मगन होने लगा,
शुक्रिया मेरी जिन्दगी में आने का शुक्रिया,
शुक्रिया मुझको अपना बनाने का शुक्रिया,
मेरे दर्द को अपना समझ कर
मामूल पर लाने का शुक्रिया।

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