अनमोल यादें बचपन की! Surya Pratap Singh
अनमोल यादें बचपन की!
Surya Pratap Singhअनमोल यादें बचपन की!
वो आँगन, वो बाग और नदी का किनारा,
वो चिड़ियों की चहचहाहट भरा सवेरा।
कड़ी धूप हो या झमाझम बारिश,
वो आम के बागों मे छुट्टियाँ बिताना।
बारिश की बूँदें, मिट्टी की सौधीं सी खुशबू,
न जाने कितनी यादें हैं इन आबो-हवा में,
जहाँ बीती बचपन की यादें सुहानी,
खुले आसमाँ की वो शामें सुहानी।
छत पर बिस्तर और दादी की कहानी,
कहीं यदि रात में आ जाए जो पानी।
चद्दर चढ़ा के यूँ सो जाना,
और इंतज़ार और बेइतंहा गुजारिश,
कि कहीं इस समय बरस जाए न पानी।
लाख बंदिशें पर नदी में नहाना,
अनगिनत अठखेलियाँ और जलक्रीड़ाएँ,
दोस्तो संग बचपन की सारी वो मस्ती,
सारी बदमाशियाँ वो कागज की कश्ती।
बातों ही बातों मे एक-दूसरे से रूठ जाना,
पल में रूठना पल मे मान जाना।
रिश्तों इत्यादि की कसमें खिलाना,
मिलकर छोटे-छोटे घरों को बनाना।
निश्छल मन न कोई विवशता,
न परवाह किसी की, न जिम्मेदारियों का बस्ता।
समय में कही खो गया वो बचपन,
मन बरबस ही खोजता है प्यारा वो बचपन॥