अनमोल पुड़िया ARUN KUMAR SHASTRI
अनमोल पुड़िया
ARUN KUMAR SHASTRIतस्वीर में कुछ और सामने कुछ,
अजब सा लब्बोलुआब था उसके चेहरे पर,
काम में मशगूल हो तो वेदों की ऋचाओं सी,
नीद में गाफिल हो तो मासूमियत बच्चों की।
सखियों संग हो तो चहचहाती चिड़िया सी,
माँ पिता के सामने अनमोल पुड़िया सी,
तस्वीर में कुछ और सामने कुछ,
अजब सा लब्बोलुआब था उसके चेहरे पर।
कभी मजाक में कुछ कह दो तो गोलगप्पा,
कभी तारीफ में कुछ कह दो महकता गुलदस्ता,
और कभी गर बात न करो तो सवालों की अन्भूझ पोटली सी,
तस्वीर में कुछ और सामने कुछ,
अजब सा लब्बोलुआब था उसके चेहरे पर।
मैं जन्म से साथ हूँ उसके अगल बगल,
पर एक पहेली सी वो मासूम ग़ज़ल,
न मैं समझ पाया कभी उसको,
न खुली वो कभी की कोई पढ़ ले उसको ,
तस्वीर में कुछ और सामने कुछ,
अजब सा लब्बोलुआब था उसके चेहरे पर।