स्त्री  Kumari Deepanshi Srivastava

स्त्री

Kumari Deepanshi Srivastava

बर्बरता की हर हद को अब पार न करना ऐ पुरुषों,
स्त्री की कोमलता पर फिर वार न करना ऐ मनुजों।
 

एक स्त्री की शक्ति तुम्हें आशक्त स्वतः कर सकती है,
पर प्रतिमा है प्रेम की वह सो माफ तुम्हें कर देती है।
 

एक पुरुष के पुरुषार्थ का तब सर्वनाश हो जाता है,
जब एक स्त्री पर वह पुरुष जबरन अधिकार जमाता है।
 

मानव की मानवता का भी अंत वहीं हो जाता है,
जब कोई नारी का सम्मान तार तार कर जाता है।
 

दुनिया की यह दशा देख मेरा मन विचलित होता है,
एक स्त्री की दुर्दशा देख ये मन बड़ा चिंतित होता है।
 

क्यों गली कूचे में चलने पर मन स्त्री का घबराता है,
क्यों दुनिया की इस चकाचौंध से मन उसका सकुचाता है।
 

जो एक बार हिम्मत करके फिर निकल जाए बेटी घर से,
फिर पूछो न मन की व्यथा कैसे सहती है घर आके।
 

कोई देखे ऐसे जैसे हो अजूबा दुनिया का,
कोई जान कहकर पुकारे तो कोई खींचे आँचल उसका।
 

है शर्मसार पुरुषार्थ आज खोया नैतिकता का दर्पण,
है शिथिल पड़ा यह देश आज रोया पुरुषों के इस बल पर।

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