आँसू और उलझन  ARUN KUMAR SHASTRI

आँसू और उलझन

ARUN KUMAR SHASTRI

मेरे आँसुओं से तुम मुझे पहचान नहीं पाओगे
देख कर इनको इनमे तुम भी उलझ जाओगे।
 

दर्द है इनमें पीड़ा है आहत हृदय का क्रंदन है,
सम्पूर्णता है व्यथा है व्यग्रता है भटक जाओगे।
 

मैं नारी हूँ जगत सृष्टा की अद्भुत कृति हूँ,
देव नहीं समझे जिसको तुम क्या समझ पाओगे।
 

दर्द में अश्रुओं का बहना बात है सामन्यतः,
सुख में यदि ये लगे बहने तो क्या कर पाओगे।
 

वेदना पीड़ा प्रिय विरहन काल संग सतत,
सिसकना सुगबूगाना सतत हर पल।
 

नारीत्व की नारीत्व से शिकायतें हैं अलग,
तुम तो हो पुरुष एक सोचते रह जाओगे।
 

प्यार दुविधा संवेदना सामवेदना आत्म अनुभूति,
लिए, अपने आँचल में जगत संताप समेटे हुए।
 

ललनाएँ विश्व की जीती हैं अधूरी ज़िन्दगी,
सोचो तो ज़रा तुम इन्हें कैसे पूरी कर पाओगे।
 

मेरे आँसुओं से तुम मुझे पहचान नहीं पाओगे,
देख कर इनको इनमे तुम भी उलझ जाओगे।
 

मेरे आँसुओं से तुम मुझे पहचान नहीं पाओगे,
देख कर इनको इनमे तुम भी उलझ जाओगे।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
823
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com