समेट लो आचल में मॉं ! Surya Pratap Singh
समेट लो आचल में मॉं !
Surya Pratap Singhहै अगर इन्सान तू तो
हर किसी की कद्र कर,
गिद्ध नज़र अबला पर डालकर
इंसानियत को शर्मशार न कर।
मर गया है आँखो का पानी
आज के इस दौर की है यही कहानी,
आबरू लूटे जो किसी की
तो धिक्कार है ऐसी जवानी।
संस्कारों की तिलाञ्जंलि हुई कुछ इस कदर
कह रही है हर बाला इसलिए आज डर,
समेट लो आचल में मॉं मुझे इस कदर
जिससे पड़े न किसी आततायी की नज़र।