हाथों-हाथों की बात  सीमा भुनेश्वर सिंह

हाथों-हाथों की बात

सीमा भुनेश्वर सिंह

जुड़कर दोनों हथेलियाँ
करबद्ध सबको प्रणाम,
सुनो, सुनाए हाथों-हाथों की बात...
 

रचते हैं हाथ, अनगढ़ नव संसार
धरते हैं भुजा बल, अस्त्र-शास्त्रार्थ
महके हैं हाथ, रची हिना, रंग लाल
भींगे हैं हाथ, रोके अश्क-बूँद-बरसात
कही-अनकही, हाथों-हाथों की बात...
 

कहीं नन्हें हाथ खिलौनों-किताबों से भरे
कहीं नन्हें हाथ, जूठी प्याली-केतली धरे
कहीं कोमल हाथ हैं, कलियाँ-फूल लोढ़े
कहीं रूखे हाथ हैं, गोबर सान-उपले थापे
करतार बने, आविष्कार करे हैं हाथ
कही-अनकही, हाथों-हाथों की बात...
 

हाथ ही कुटिया छाये और बनाए
महल-दो-महल आसमान
हाथ ही धुने-बुने कपास और लिखते
नियम-कानून, संविधान
हाथ जुड़े तो शांति और उठ जाए,
द्वंद्-रहे, मचे कोहराम
हाथ पत्थर तोड़े ज़ुल्मी कैदी और
प्रेम में मांझी के, शीश नवाए पहाड़
सुने सुनाए, हाथों-हाथों की बात...
 

आज हाथ पकड़ा है, चलना सीखा
कल भूल न जाना, अंतिम संस्कार
एक रचना ही नहीं, समूची परंपरा भी है हाथ
कही अनकही, हाथों-हाथों की बात।

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