दर्द-ए-दास्ताँ  Surya Pratap Singh

दर्द-ए-दास्ताँ

Surya Pratap Singh

दर्द-ए-दास्ताँ सुनाएँ किसको?
तसव्वुर में क्या है दिखाएँ किसको?
खामोश लब और बेपनाह बेचैनियाँ,
यहाँ हर शख्स परेशान है बताएँ किसको?
 

दिलों के जज़्बात छिपाए नहीं जाते,
महफिल में सभी से बताए नहीं जाते।
अजब कश्मकश है ज़िन्दगी की यारों,
छिपाए भी नहीं जाते, बताए भी नहीं जाते।
 

मन का बोझ हल्का करना भी ज़रूरी है,
दर्द दिलों के बयाँ करना भी जरूरी है।
कह सकें दिल के जज्बात बेहिचक जिससे,
पर हमराज ऐसे होने भी ज़रूरी है।
 

लफ़्ज़ों की चाशनी परोसता है हर कोई
इस मतलबी मौकापरस्त दुनिया मे,
हमदर्द बन समेट ले जो दर्द-ए-गम को,
हमसाए ऐसे रूबरू होते नहीं कहीं।
 

नश्तर चुभोने को तैयार है हर शख्स,
करो कोई गलती इंतज़ार में है हर शख्स।
रखना कदम सम्भाल के इस बेगैरत जहाँ में,
गिरोगे तुम कैसे इसी विचार में है हर शख्स।
 

बड़ी दुश्वारियाँ हैं ज़िन्दगी के सवालों में,
आसान नहीं है ज़िन्दगी के हर जवाब।
सहना बहुत है दर्द इस दौर-ए-ज़िन्दगी में,
तब जाके पूरे होते हैं ज़िन्दगी के कुछ ख्वाब।

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