माँ APOORVA SINGH
माँ
APOORVA SINGHक्या कहूँ तेरी तारीफ में माँ
अल्फ़ाज़ कम पड़ जाएँगे,
ममता का बता तेरी क्या मोल
ताउम्र ना चुका पाएँगे।
तू ही मेरा ईश्वर मेरा जहान है,
तू ही मेरा मान मेरा अभिमान है,
तेरी छाँव में है सारी कायनात बसी,
तू ही मेरा गुरूर तू ही मेरी जान है।
याद आते हैं मुझे वो सारे पल
जब तूने घंटों लोरी गाया था,
बना के झूला साड़ी से
दिन-दिन रात झुलाया था।
कहीं ना लगे मक्खी मुझको
आँचल में भी छुपाया था,
कैसे ये कर्ज आखिर उतर पाएँगे,
एक जन्म तो क्या
सात भी कम पड़ जाएँगे।
तेरी एक मुस्कान की खातिर
उस रब से भी लड़ जाऊँगा,
हाँ-हाँ भाई पूजूँगा उस पत्थर की मूरत को भी,
पर सबसे पहले तेरे सजदे में सिर झुकाऊँगा।