दौर-ए-अमीरी Surya Pratap Singh
दौर-ए-अमीरी
Surya Pratap Singhदौर-ए-अमीरी मे वो अदब और तमीज भूल बैठे हैं,
मिली बरकत जो थोड़ी तो दहलीज भूल बैठे हैं।
मगरूर हो गए हैं वो बदले-बदले से हैं मिजाज,
वो इतिहास का सबब और औकात भूल बैठे हैं।
लकीरें खींचते फिरते हैं जहाँ मे वो,
चले कहाँ से थे वो लकीर भूल बैठे हैं।
सबसे बेजार होकर फिरते हैं जहाँ में,
दौर-ए-अमीरी मे खुद को औरों से दूर कर बैठे हैं।
जरा पैसा हुआ तो मगरूर न हो जाओ,
पैर रखो जमीं पर हवा में न इतराओ।
भूलो न अपने मकाम को वरना,
वक्त की आँच से शाह भी फकीर बने बैठे हैं।