प्रेमिका के याद में  धीरेन्द्र पांचाल

प्रेमिका के याद में

धीरेन्द्र पांचाल

उसकी यादों के तिनके से दरिया पार हो जाऊँ,
वो मंद-मंद मुस्काए जब मैं कश्ती संग बह जाऊँ।
 

लाल कपोलों पे उसके वो तिल है काली-काली,
फूलों की पंखुड़ियों सी उसके अधरों की लाली।
वो जो बादल बन गरजे मैं सावन बन इतराउँ,
लबों को छू कर प्यास बुझे बस यूँ ही बरस न पाऊँ।
वो हँस कर अपना दर्द छुपाये मैं कैसे सब कह जाऊँ,
वो मंद-मंद मुस्काए जब मैं कश्ती संग बह जाऊँ।
 

क़ातिल लगती तीखी आँखों से मीठा आघात करे,
जान भी तब बेजान हो जाए जब वो मुझसे बात करे।
उसकी भींगी जुल्फों से जब छेड़खानी वो वात करे,
लगता कि पांचाल स्वयं ही अपने ऊपर घात करे।
वो अधरों से संघात करे मैं महल पुराना ढह जाऊँ,
वो मंद-मंद मुस्काए जब मैं कश्ती संग बह जाऊँ।

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