प्रतिकूल परिस्थितियाँ Surya Pratap Singh
प्रतिकूल परिस्थितियाँ
Surya Pratap Singhसमय यदि न हो अनकूल,
तो अच्छे कदम भी पड़ते है प्रतिकूल।
प्रतिकूल हो जाएँ यदि परिस्थितियाँ,
आती है तब हर दिशा से बाधाएँ।
षड्यंत्रों के जाल बुने जाएँ जहाँ
कैसे गिरे किसी का मान यहाँ,
हो हर पल यही विचार जहाँ
ऐसे मे कोई कैसे रहे वहाँ?
ऐसे में हम खुद को कैसे संभालें,
पथ प्रदर्शित करे कोई मेरा,
किंकर्तव्यव्यविमूढ़ सी स्थिति मेरी
अब इस परिस्थिति मे किधर जाएँ ?