माहवारी  Anupama Ravindra Singh Thakur

माहवारी

Anupama Ravindra Singh Thakur

हे देवी माँ
तू ही बता
कैसी प्रथा है आई,
जिससे हुआ सृष्टि निर्माण
उसी को अशुद्धि बताई।
स्त्री का मासिक धर्म
अगर इतना अशुद्ध है,
फिर कैसे जीव निर्माण संभव है।
 

ना हो अगर माहवारी,
ना होगा पुरुष
और ना होगी नारी,
थम जाएगी
यह सृष्टि सारी।
 

महावारी
के आने से
कैसे अशुद्ध, अपवित्र
होती है नारी?
सृष्टि के हर कण में
बसे है ईश्वर कल्याणकारी।
 

प्रतिदिन हजारों स्त्रियों को
आती है महावारी,
फिर क्या
अशुद्ध और अपवित्र
होती है
धरती सारी?
 

क्या अशुद्ध हो जाती हैं
फसलें सारी?
अपवित्र हो जाती हैं
नदियाँ हमारी?
कब तक चलेगी
यह प्रथा कष्टकारी?
पंगु मानसिकता का प्रमाण है
यह सोच हमारी।
 

धरती, भूमि, सृष्टि
हर किसी में
स्त्री तत्व ही आधार है,
बिना मासिक धर्म के
न गतिशील संसार है,
तजना हमें यह अंधविश्वास
और सोच पुरानी है,
यह अपवित्र, अशुद्धि नहीं
बल्कि ईश्वर का वरदान है।

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