बदलते देखा है Aman Kumar Singh
बदलते देखा है
Aman Kumar Singhइस रोज़ बदलती दुनिया में
मैंने लोगों को बदलते देखा है,
व्यवहार बदलते देखा है,
किरदार बदलते देखा है।
उन माँ-बाप के लाडलों का
परिवार बदलते देखा है,
हकदार बदलते देखा है,
ताज्जुब नहीं मुझे इस बात का
मैंने घर-बार बदलते देखा है।
छोटे-छोटे उन गाँवों को
शहरों में बदलते देखा है,
गाँवों की हरियाली को
पत्थर में भी ढलते देखा है,
उन छोटे मजदूरों, कृषकों, बूढ़ों और बच्चों का
संसार बदलते देखा है।
अक्सर दो प्रेमी जोड़ों का
इकरार बदलते देखा है,
इज़हार बदलते देखा है,
जो हद से भी ज्यादा था उनमें
वो प्यार बदलते देखा है।
एक बार नहीं इंसानों को
सौ बार बदलते देखा है।
अपने विचार साझा करें
यह कविता मेरे मन की उपज मानी जा सकती है। दरअसल एक दिन बैठे-बैठे सहसा मेरे मन में एक विचार आया और मैंने उसे कविता का रूप दे दिया। यह कविता हम सबके जीवन में हमारी आँखों के सामने लगातार हो रहे बदलावों को रेखांकित करती है। आशा करता हूँ कि ये कविता आप सबको पसंद आएगी।