चलो चलें सखी Gaurav Goel
चलो चलें सखी
Gaurav Goelचलो चलें सखी अनंत की ओर,
मुक्त कर दें हम इस जीवन की डोर।
अपने जीवन को दें हम आत्मा का रंग,
स्वर्ग है एकांत, अकेलेपन से बढ़ कर नहीं है कोई आनंद।
चलो चलें सखी अनंत की ओर,
चलो चलें आज खुद को फिर से टटोलें,
खुद की अच्छाइयों से आज फिर से एक दूजे को जोड़ें।
तुम कली बनकर खिली थीं हार बनकर खो गई क्यों?
अजीब सी ये ज़िन्दगी एक पल में सो गई क्यों?
एक प्रेम मैंने उसी वक़्त तोड़ा था,
जीवन पथ पर तुझे कहीं छोड़ा था।
तेरे संग बिताई वो घड़ी,
कई बार मैंने है तेरी रहा तकी,
आज भी तू मुझे बहुत याद आती है सखी।
सब कुछ छोड़ हम यहाँ से चलें जाएँगे,
नामों में न कोई हमे बाँध पाएगा,
नर है न नारी है क्योंकि आत्मा तो है संज्ञा विहीन।
अपने जीवन को दें आत्मा का रंग हम,
चलो चलें सखी हम अनंत की ओर।