गाँव-शहर का द्वंद्व Aman Kumar Singh
गाँव-शहर का द्वंद्व
Aman Kumar Singhजमाने में यह द्वंद्व है
क्या गाँव में, क्या शहर में,
शहर अच्छा या बुरा
या भला है गाँव क्या।
शहर के पक्ष में ये तर्क है
सपनों का ये स्वर्ग है,
शिक्षा यहाँ, है सभ्यता
पैसा यहाँ है बोलता।
ऊँचे-ऊँचे पक्के मकाँ
पर भीड़ में अपने कहाँ।
गाँव में है कुछ अपना सा
संस्कृति अपनी बसती यहाँ,
माता-पिता और मीत हैं
सबके दुख में दुख और
सबके सुख में संगीत है।
है धूप तो यहाँ छाँव है
अब भी दिलों में गाँव है।
कुछ तरसते गाँव को
कुछ हैं मरते शहर पर,
संघर्ष, सपने शहर में
पर ज़िन्दगी है गाँव में।
इस द्वंद्व में भी द्वंद्व है
अच्छा है क्या और क्या बुरा।
अपने विचार साझा करें
यह कविता गाँव और शहर को लेकर आमजन के मध्य होने वाले द्वंद्व पर आधारित है। जो गाँव में रहता है, शहर उसके लिए एक सुनहरा स्वप्न होता है और जो शहर की भागदौड़ में फँसा हुआ है वह गाँव में अपने जीवन के ठहराव की कल्पना करता है। बस इसी उधेड़बुन में दोनों का जीवन गुज़र जाता है।