सरस्वती वन्दना Abhishek Pandey
सरस्वती वन्दना
Abhishek Pandeyवंदन है तुझको शारदे,
वंदन है तुझको शारदे,
नीरस कविता- सलिला में,
भाव रूप तू रस भर दे।
विकृत मन के तारों को
नव रागों से झंकृत कर दे,
वंदन है तुझको शारदे,
वंदन है तुझको शारदे।
निर्लिप्त, अधूरे भावों को
नूतन कमलों-सा पुष्पित कर दे,
निष्प्राण गढ़े किंचित शब्दों को
काव्य- सुधा से सिंचित कर दे,
वंदन है तुझको शारदे,
वंदन है तुझको शारदे।
अपने विचार साझा करें
एक साहित्यकार सदैव अपने मन के भावों को ही कागज़ पर गढ़ता है, अपनी कल्पना से उन्हें सजीव और सशक्त बनाता है। इसीलिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि उसके मन के भाव स्पष्ट हों। अस्तु इसी कड़ी में मैंने भी माँ सरस्वती से वंदना की है कि वे मेरे भाव स्पष्ट कर दें और मेरे शब्दों में अपनी प्रेरणा से एक नई जान फूँक दें।
