अतृप्त मन (हाइकु) Abhishek Pandey
अतृप्त मन (हाइकु)
Abhishek Pandeyधोखा ही खाया,
मन ये सिरफिरा,
फिर से गिरा।
बुद्धि-अंकुश,
काम न मेरे आया,
ओफ! ये माया।
ज्ञान-भण्डार,
शिक्षा में खर्चा अर्थ,
सब है व्यर्थ।
छाई उदासी,
धन से आई हाँसी,
सब अतृप्त।
थमा जीवन,
भागता हुआ मन,
अधूरी प्यास।
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हर व्यक्ति के जीवन में ऐसी परिस्थिति आती ही है जब उसे पता होता कि जीवन की फलां समस्या से कैसे उबरा जाए, पर वो उस ज्ञात ज्ञान को उपयोग में नहीं ला पाता। जैसे कि अगर बात आत्मिक साधक की करें तो उसे पता है कि मुक्ति हेतु क्या मार्ग है, वासना कभी तृप्त नहीं होगी, पर वो उस ज्ञान का कर्म में निरुपण नहीं कर पाता। तब उसे प्रतीत होता है कि मेरा सारा ज्ञान, शिक्षा सब व्यर्थ है, सब सारहीन है। एक अध्यात्मिक साधक को जब अपना ज्ञान निरर्थक लगने लगता है, उस परिस्थिति में उसके मन के भाव का चित्रण इस कविता में किया गया है।