UPSC का सफरनामा Aman Kumar Singh
UPSC का सफरनामा
Aman Kumar Singhजब घर से निकला था तो
कुछ सपने थे इन आँखों में,
कुछ सवाल, कुछ जवाब,
कुछ किताबें थीं इन हाथों में।
कुछ परायों की बातें
कुछ अपनों का प्यार लिए,
मैं निकला था घर से
आत्मविश्वास का हथियार लिए।
वो जग जीतने के सपने,
परायों में भी कुछ अपने,
वो कंटीला सफर,
वो तूफानों से टकराने का हुनर,
ये सब खुमार लिए
निकला था मैं उम्मीदों का पहाड़ लिए।
गुज़रते वक्त के साथ कुछ अच्छा हुआ
कुछ बुरा भी हुआ,
कुछ अपने बने
और कुछ अपने पराए भी हुए।
घर भी छूटा
और कई बार मैं खुद से भी रूठा।
कुछ सपने भी टूटे
कुछ अपने भी रूठे,
वो हारने का भय,
वो उजड़ी हुई सुबह,
वो उदास सी शाम,
उस शाम में हम कहीं गुमनाम।
अक्सर सोचता हूँ मैं कि
क्या पाया और क्या छूटा था?
माँ से जो वादा किया था
क्या वो झूठा था?
कई सवाल उमड़ते हैं ज़हन में,
मैं अब भी उन सवालों के जवाब ढूँढता हूँ,
दिल्ली शहर में मैं अब भी अपने ख्वाब ढूँढता हूँ।
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यह कविता उन सभी प्रतिभागियों को समर्पित है जो UPSC की परीक्षा को पास करने के लिए स्वयं को एक एक भट्टी में तपाते हैं। इस कविता में उस पूरे सफर को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। ये एक ऐसा सफर है, एक ऐसी प्रक्रिया है जो सफलता और असफलता के बीच जीवन के सही मतलब से रूबरू कराता है।