हुँकार  Abhishek Pandey

हुँकार

Abhishek Pandey

एक दो विजयों में क्या हर्ष करूँ,
किंचित हारों में क्यों रंज करूँ,
इस अविरल बहती रणधारा में,
मैं क्यों अपनी पतवार तजूँ?
 

वार एक का अंतर है जीवन मृत्यु में,
तो मैं क्यों लिए भय की ओट लड़ूँ,
घाव ही मेरे विजय तिलक हैं,
उनसे उखड़ी पीड़ा पर क्या रोष करूँ?
 

युद्ध तो अभी लम्बा है,
आदि ही में क्यों शस्त्र तजूँ?
मृत्यु ही तो अमर राग है,
दूजे रागों का क्यों अधरों में पान करूँ?
इस अविरल बहती रणधारा में,
मैं क्यों अपनी पतवार तजूँ?
मैं क्यों अपनी पतवार तजूँ?

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