आक्रोश Abhishek Pandey
आक्रोश
Abhishek Pandeyसन सैंतालीस के नील गगन में
कृष्ण मेघ फिर छाया है,
सत्ताधारी पक्ष निरंकुश
निज शक्ति में भरमाया है।
अवलंबित हम पर, शक्ति हमी से,
हमको ही रौब दिखाता है,
वह थोथ चुनावी वादों से
जनमानस को बहलाता है।
एक गाल पर मार थपेड़ा
दूजे को सहलाता है,
नाम बताऊँ उसका क्या!
वह दिल्ली का शहंशाह कहलाता है।
नाश करो इन मेघों का
हे लोकतंत्र के सूर्य उगो!
बहुत हुई अब तलक प्रतीक्षा,
अब और नहीं तुम थमो, रुको।