कोरोना का प्रकोप Aman Kumar Singh
कोरोना का प्रकोप
Aman Kumar Singhसुना था मैंने,
एक दिन आदमी ही आदमी का दुश्मन होगा,
फिर आई महामारी एक ऐसी,
साँप के मुँह में अमृत जैसी,
अब इंसान ही इंसान का दुश्मन लगे,
पास आने से इंसान डरे।
इस दौर में ऐसा मंजर है,
वही ज़िंदा है जो घर के अंदर है,
जो घर से हैं बाहर निकले,
कोरोना उसको है जकड़े।
अस्पतालों में ऐसा मंजर है,
कोई तड़प रहा है साँसों को,
कोई तड़प रहा है लाशों को,
कोई आस लगाए बैठा है,
कोई साँस लगाए बैठा है।
जीवन भी कैसा क्रूर हुआ
जो अपनों से भी दूर हुआ,
बस उसके मन की बस सोच जरा,
उसके खातिर घर बैठ जरा।
इंसानियत के खातिर ही सही,
ऐ इंसान थम जा जरा।