अब राह नहीं बदलूँगा  Abhishek Pandey

अब राह नहीं बदलूँगा

Abhishek Pandey

सूरज बरसाए निज अग्नि
या गहराती जाए अब रजनी,
अब फूल मिलें या निष्ठुर कंटक
पथ कठिन मिले या सरल अकंटक।
 

अब धूप मिले या छाँव मिले,
विजय मिले या घाव मिले,
मिले प्रशंसा या फिर दुत्कार मिले,
हर्ष मिले या प्राणों को चीत्कार मिले।
 

अब स्वेद बहे या रक्त बहे,
अश्रु बहे या हृदय दहे,
अब हार मिले या जीत मिले,
धिक्कार मिले या प्रीति मिले।
 

अब हार जीत की चाह नहीं,
बदलूँगा अब मैं राह नहीं,
मापूँगा गहरे सागर को,
गहरा है परन्तु अथाह नहीं।
 

चल दिया जिस राह पर
उसमें सतत गतिशील हूँ,
बन गया हूँ मैं नदी
अब न रहा मैं झील हूँ।

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