कर्मयोग : युग की अवश्यकता  Abhishek Pandey

कर्मयोग : युग की अवश्यकता

Abhishek Pandey

जब भारत माता माँग रही है
तेरे गर्म लहू की धार,
तब विरक्त हो भाग गए
जीवन को तुम समझ भार।
 

जब चल रहा युद्ध चहुँ ओर
मचा है हाहाकार,
तब शस्त्र त्यागकर द्रोण हुए
परिणाम पूर्व तुम मान हार।
 

तुमने गीता में सन्यास पढ़ा
क्या कर्म योग तुम भूल गए?
क्या वो नासमझे बच्चे थे
जो फाँसी पर हँसते झूल गए?
 

जिसकी जहाँ जरूरत है
वह वहीं सदा अच्छा लगता है,
शक्ति के ही गर्भों में
धर्मों का बीज पला करता है।
 

जहाँ स्वराज्य का वास नहीं
वहाँ धर्म सदा दुर्बल है,
हिंसा अरु असि की धारों से ही
अहिंसा को मिलता सम्बल है।
 

अब सन्यास योग का समय नहीं
अब कर्म योग की बारी है,
प्यासी, पथराई आँखों से,
भारत माँ तेरी ओर निहारी है।

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