भीष्म - कृष्ण संवाद Abhishek Pandey
भीष्म - कृष्ण संवाद
Abhishek Pandeyव्रती भीष्म के बाणों से
पाण्डव दल का संहार देख,
क्रोधातुर हो श्रीभगवान उठे
प्रत्यक्ष धर्म की हार देख।
चक्का ले रथ का हाथों में
वे ओर भीष्म की दौड़ पड़े,
थर-थर काँपते थे दोनों दल
कुछ थे सहमे, कुछ मौन खड़े।
समीप भीष्म के जाकर के
वे गर्जित मेघों सम बोल उठे,
कँप-कँप कँपने लगी धरा
लोक चतुर्दिश डोल उठे।
हे भीष्म सुनो रक्षार्थ धर्म के
निज का मैं प्रण तजता हूँ,
सावधान हो जाओ तुम
मैं अभी तुम्हारा वध करता हूँ।
अभिमान अपना छोड़कर,
रथ त्यागकर, कर जोड़कर,
वह योद्धा मही पर आ गया,
भाल उसका झुक गया
मानो निधि कोई पा गया।
बोला समीप जाकर प्रभु के
हे केशव! इस तुच्छ सेवक के वचन का
मान तुमने रख लिया,
निज वचन को त्यागकर भी
अभिमान मेरा ढक लिया।
मुक्त करो हे केशव मुझको
अब इस जर्जर काया से,
सौभाग्य मेरा अति गुरुतर है
यदि मैं मरूँ, तुम्हारे हाथों की माया से।