अंदर कुछ और बाहर कुछ  Abhishek Pandey

अंदर कुछ और बाहर कुछ

Abhishek Pandey

बाहर कितनी चहल पहल,
जगमगाती टिमटिमाती बत्तियाँ,
आकाश तक उठता शोरगुल,
तन पर सुन्दर वस्त्र, आभूषण,
चेहरे पर बनावटी मुस्कान,
पर अंदर एक नीरस चुभता मौन,
मन के कोने-कोने में भरा अंधेरा,
निष्ठुर कुरूपता,
कलेजे को छेद देने वाली व्यथा।
यह सब ऐसा है मानो
जैसे सागर के तल पर शांति,
गहराई में अनेक हलचलें,
घात - प्रतिघात।
मजबूरी कहूँ या डर,
क्यों मैं अंदर वाले को बाहर नहीं आने देता?
शायद इसलिए क्योंकि अगर ऐसा हुआ,
तो मैं बचूँगा अकेला, एकदम अकेला।
और परिणाम -
रिश्तों की डोरें हिल जाएँगी,
मेरा सारा कुछ जिसे मैं "मैं" कहता हूँ,
समाप्त हो जाएगा,
फिर शुरू करनी होगी,
तलाश एक नई पहचान की।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
680
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com