वो डायरी का एक पन्ना Abhishek Pandey
वो डायरी का एक पन्ना
Abhishek Pandeyसिसकता ही रह गया
वह डायरी का एक पन्ना,
निज व्यथा कभी कह न पाया।
मौन हो स्वयं में सिमटा रहा,
वेदना में हर दिवस पिसता रहा,
पर तुझसे कभी कुछ कह न पाया
वो डायरी का एक पन्ना।
उसके हृदय में उठते रहे
नित रोज ही ज्वर प्रेम के,
पर वो प्रेम संकोच के ही तटों में
आबद्ध हो बहता रहा,
उन तटों को तोड़कर, उत्प्लावित हो,
तुझ तक कभी भी जा न पाया,
शब्द में ही सिमटा रहा,
अधर से कभी कुछ कह न पाया,
वो डायरी का एक पन्ना........