पुरुष का अहम  Anupama Ravindra Singh Thakur

पुरुष का अहम

Anupama Ravindra Singh Thakur

मैं पुरुष
मैं सर्वश्रेष्ठ
मैं सर्वोपरि
सदा ही नारी
रही दासी मेरी
मैं उसका अधिकारी
वह आश्रिता मेरी।
 

मैं पुरुष
मैं सर्वश्रेष्ठ
स्त्री मेरी चरण धूली
कब और किस युग में
वह मुझ से आगे निकली?
 

सतयुग में देवी सीता भी
मुझसे ही गई छली,
दशानन बन
मैंने ही
वैदेही की स्वतंत्रता हर ली,
तो
धोबी बन
मैंने ही
उसकी अग्नि परीक्षा
भी ली।
 

मैं पुरुष
मैं सर्वश्रेष्ठ
मैं सर्वोपरि,
सदा ही नारी
रही दासी मेरी।
 

द्वापर युग में
दुशासन बन
आबरू द्रोपदी की
मैंने ही
छीन ली,
पुरुष अहंकार से ग्रसित
मैं युधिष्ठिर
वस्तु समझ
पत्नी को
जुए में
दाव पर लगा दी।
 

मैं पुरुष
मैं सर्वश्रेष्ठ
मैं सर्वोपरि,
सदा ही नारी
रही दासी मेरी।
 

कलयुग में तो
मैंने
उसकी
और भी
दुर्दशा कर डाली,
बाहर जाकर
वह पैसे कमाती,
घर में नौकरानी बन
हाथ चलाती,
परिचारिका बन
रात्रि में
मेरे
काम इंद्रियों को
सुख पहुँचाती।
चरित्रहीन, कुलटा
के नाम पर
मेरी हिंसा भी
सह जाती।
 

मैं पुरुष
मैं सर्वश्रेष्ठ
मैं सर्वोपरि,
सदा ही नारी
रही दासी मेरी।
 

शिक्षित हो या अशिक्षित,
समाज के
संकीर्ण, प्रतिबंधित
संस्कारों में पली,
आजीवन अपनी
अस्मिता से बेखबर,
दासता की
बेड़ियों में बँधी
भावनाओं में बहती
कभी न पाएगी
दासता से मुक्ति।
 

मैं पुरुष
मैं सर्वश्रेष्ठ
मैं सर्वोपरि,
सदा ही नारी
रही दासी मेरी,
मैं उसका अधिकारी
वह आश्रिता मेरी।

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