मैं क्या हूँ Kaushik Kashyap
मैं क्या हूँ
Kaushik Kashyapमैं मोमिन हूँ या काफिर मायने नहीं रखता,
चाँद कितना भी खूबसूरत हो आईने नहीं रखता।
हम रोज़ उसकी बस्ती देख सपने बुनते हैं,
वो हमारी ओर देखता ज़रूर है, उसके मुआयने नहीं रखता।
और रखे भी भला क्यों कोई मुश्ताक मैं भी नही हूँ,
पर झूठ होगा गर यह कहे कि सोते वक्त उसे सिरहाने नहीं रखता।
साथ रहने के कितने ही वादे किए हैं मैंने उसको,
पर मलाल यही है कि इन वादों में मैं उसी को शामिल नहीं रखता।
कहना था कभी तुमको अब बस अफसोस होता है,
पर हजारों बातें हैं, मैं हर बात कह भी नहीं सकता।