बिटिया का संसार Yogendra Singh Chauhan
बिटिया का संसार
Yogendra Singh Chauhanघर पहुँचा तो देखा बिटिया खेल रही थी,
खेल रही थी गुड्डा और गुड़िया,
शेर, भालू, बंदर और जन देख रहे थे,
सब थे बादल, हवा, नदी और सागर,
और था गौरैयों का झुंड।
उसकी कल्पित दुनिया को मैं सुन सकता हूँ,
सुन सकता हूँ कि कोई भूला बिसरा नहीं,
कोई अलग या ऊँचा-नीचा नहीं,
शेर अठखेलियाँ करता है, बंदर झूम के गाता है,
आधी जगह पर बारिश है, नदिया भी तो सबकी है।
सुन सकता हूँ, लेकिन वह जीती है,
यथार्थ है, उसका कल्पना का संसार,
शायद कल्पना ही सत्य है,
यह जीवन तो दिलासा है,
दिलासा है इसीलिए कल्पना जीवित है।
अदृश्य दीवार पार से वो मुस्कुराई
मुझ पर या मेरे संसार पर,
या सिर्फ वो मुस्कुराना ही जानती है,
दुनयाई दुख को बाहरी सीमा पर बाँध दिया,
और मेरे भ्रम को पार आती हवा ने बहा दिया।
मैं चला आया,
उस संसार में अपनी कोई जगह नहीं,
जब तक है रहने दो,
झूठा जीवन तो फिर जीना ही है।