नर-नारी  Anupama Ravindra Singh Thakur

नर-नारी

Anupama Ravindra Singh Thakur

एक बार
एक भक्तिन ने पूछा
श्री भगवान विष्णु से
एक सवाल,
क्यों बैठी है लक्ष्मी जी
आपके कदमों में,
यह कैसा बिछाया है जाल?
 

आपको देख
आज प्रत्येक पुरुष का
है यह हाल,
स्वयं को
नारायण समझता है
चाहे बैठा हो
निठल्ला, बेकार, बेहाल,
स्त्री पखारती रहे
उसके चरण
प्रात: से संध्याकाल।
 

नहीं पसंद
उसे स्त्री की तरक्क़ी,
क्रोध से भरता है
उसका भाल,
समझता है
वह है स्त्री उसकी दासी
चाहे हो कोई भी काल।
हे! नारायण ,
यह कैसा बिछाया है जाल?
 

सुन यह
स्त्री की समस्या विकराल
मंद-मंद मुस्काए
श्री यशोदा नंदन लाल।
बोले
श्री लक्ष्मी प्रतीक है
धन और ऐश्वर्य की
और है
वह बहुत ही चंचला,
रूकती है वहीं
जहाँ हो सच्चाई, ईमानदारी
और परोपकार का भाव पला।
 

मैं नारायण
सृष्टि का पालन करता,
चाहे तीनों लोकों का
मैं करता-धरता,
पर बिना लक्ष्मी के
नहीं मैं कोई कार्य करता,
अपने समकक्ष
उन्हें बिठाकर
उनसे राय मशवरा करता।
 

जगत जननी
वह शक्ति स्वरूपा,
युगों-युगों से है
हमारा रिश्ता,
अर्द्धांगिनी वह मेरी
वही मेरी शक्ति स्रोत,
उसी से प्राप्त है
मुझको राजसी सत्ता
हर पल मैं उसको पूजता।
 

मेरा प्रेम आदर पाकर ही
वह मेरे चरण पखारती,
मैं उसका स्वामी
वह स्वामीनी मेरी,
हर जन्म में
वह बनती संगिनी मेरी।
 

केवल
उचित मान-सम्मान
और प्रेम की
भूखी है नारी,
पुरुष को त्यागनी होगी
अपनी वृत्ति अहंकारी,
तजनी होगी, अकड़ सारी,
तभी लक्ष्मी और नारायण बनेंगे
प्रत्येक नर और नारी।

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