गुरु न कहना तुम मुझे SANTOSH GUPTA
गुरु न कहना तुम मुझे
SANTOSH GUPTAगुरु न कहना तुम मुझे
मैं शिष्य तुम्हें बना लूँ,
शुल्क न देना तुम मुझे
अनमोल ज्ञान सिखा दूँ।
न देना सम्मान मुझे
पर, विद्या का हो मान,
संज्ञान करा दूँ जब तुम्हें
न तुमको हो अभिमान।
न करना स्मरण कभी
आचार्य को जीवन में,
पर, प्रज्ञा की ज्योति को
ज्वलंत रखना मन में।
हाँ, स्वार्थ है मेरा यह
तुभ मेधावान कहलाओ,
चमक हो तुम में भी
आभा तुम भी फैलाओ।
न देना श्रेय कोई
ना ही हो उल्लेख मेरा,
विस्मृति के अंक में
चढ़ा देना भेंट मेरा।
चाह बस इतनी है
ज्ञान सदा चंचल हो,
बुद्धि-विवेक की चाल से
जीवन सबका सरल हो।
आधुनिकीकरण के युग में
निःसंदेह! गुरू का मोल नहीं,
पर, शिक्षा के बिना यह जीवन
बनता मीठा घोल नहीं।
दे देना तुम नाम स्वयं को
प्रज्ञान पर मेरा अधिकार नहीं,
फल है तुम्हारे श्रम का ही
यह धन कोई उधार नहीं।
एक बात ज्ञात अगर कर लो
सुखद, सफल हो मेरा मन भी,
उत्साह जीवंत रहे गुरू का
बन जाना कभी कारण भी।
अपने विचार साझा करें
आधुनिकीकरण और तकनीक के इस युग में गुरु की महत्ता जिस प्रकार तेजी से कम हो रही है, मुझे व्याकुल करती है। मैं समझता हूँ गुरु के सम्मान में कमी कहीं न कहीं शिक्षा के महत्व को प्रभावित करती है। इन्हीं बातों से व्यथित होकर मैंने मन में उमड़े विचारों को युवाओं तक पहुँचाने का प्रयास किया है।