मैं फूल क्यों नहीं बन सकता SANTOSH GUPTA
मैं फूल क्यों नहीं बन सकता
SANTOSH GUPTAहर भौंरे को मैं भाऊँ
हर तितली को पसंद आऊँ,
हर मधुमक्खी के शहद की
मैं बूंद क्यों नहीं बन सकता,
मैं फूल क्यों नहीं बन सकता।
हर नयन मुझसे आकर्षित हो
हर मन मुझसे आनंदित हो,
हर माली मुझको पानी डाले
वह मूल क्यों नहीं बन सकता,
मैं फूल क्यों नहीं बन सकता।
सुंदर मेरा भी हर रंग हो
महकता मेरा भी सुगंध हो,
मोहूँ सबके हृदय को, वह
मंजुल क्यों नहीं बन सकता
मैं फूल क्यों नहीं बन सकता।
पंखुड़ियाँ हो मनभावन
अनूप मेरा भी पुष्पासन,
कोमल मैं भी हो जाऊँ
मैं अनूकूल क्यों नहीं बन सकता,
मैं फूल क्यों नहीं बन सकता।
प्रेम का प्रतीक बनूँ मैं भी
सदैव सटीक रहूँ मैं भी,
त्रुटियों से परे रहकर
भूल रहित क्यों नहीं बन सकता,
मैं फूल क्यों नहीं बन सकता।
उपहार, भेंट, उपासना में
सम्मान, स्नेह, भावना में,
जनमानस के उपवन का
प्रसून क्यों नहीं बन सकता,
मैं फूल क्यों नहीं बन सकता।
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फूल, प्रकृति की एक ऐसी रचना है जिसे शायद ही कोई पसंद नहीं करता होगा। फूल अपने विभिन्न रंगों, पंखुड़ियों की आकृति, महक इत्यादि से सबका मन मोह ही लेता है। मैंने एक ऐसे आदर्श मानव की कल्पना की है जो फूल की तरह हो, जो केवल प्रेम का रस जग में घोले और घृणा, द्वेष तथा बुराई इत्यादि से अनभिज्ञ हो। एक फूल की तरह आदर्श व्यक्तित्व कठिन तो है पर यह असंभव भी नहीं कि फूलों की तरह हम सद्भावना के रंग और प्रेम की महक को अपने आचरण रुपी पंखुड़ियों में समा लें। इसलिए कवि कहता है, मैं फूल क्यों नहीं बन सकता।
