जीवन संग्राम Anupama Ravindra Singh Thakur
जीवन संग्राम
Anupama Ravindra Singh Thakurचिलचिलाती
धूप के कारण
जब पसीना
बहने लगा,
चिड़चिड़ाहट सी
होने लगी,
मन बेचैन सा
भटकने लगा,
मुरझा गए
पेड़ -पौधों ने
अपना शीश
झुका लिया,
याचक बन
सभी ने
बादलों का
आह्वान किया।
यह कैसा
चमत्कार हुआ !
मतवाले बादलों का
आगमन हुआ।
रिमझिम-रिमझिम
बूंदे बरसी,
चपला सी
बिजली चमकी,
ठंडी-ठंडी
पवन चली,
मिट्टी की
सुगंध फैली,
अंग-अंग में
खुशी भर गई,
वर्षा आई
बहार लाई।
प्रसन्नता से भरी मैं
बरामदे में खड़ी
चारों और
दृष्टि दौड़ाई,
घर के सामने
उगे
बेर के झुरमुट में
कुछ आकृति
दी दिखाई।
कौतूहलवश
जब मैं
निकट गई,
अभी-अभी जन्मे
श्वान के
नवजात शिशु
दिए दिखाई।
माँ कुतिया
परेशान सी
बारिश से
उन्हें बचाती,
नन्हे-मुन्हों को
निकट खींच
गर्भ में दबाती।
बेर के
झुरमुट से पड़ती
बूंदों को
तुरंत चाटती,
चाट-चाट कर
अपने पिल्लों को
सुखाती,
विवशता भरी
आँखों से
हर पल
आकाश को
तकती जाती।
देख उसकी स्थिति
बात समझ में आई,
वर्षा किसी के लिए
सुखदाई
तो किसी के लिए
आफत
बनकर आई।
सभी के जीवन में है
संघर्ष और कठिनाई,
जिसने इसका
हिम्मत से सामना किया
उसी ने सफलता पाई।