अभिलाषा  Mandhata Patel

अभिलाषा

Mandhata Patel

कि तुम साँसों में बस जाओ,
कि तुम यादों में खो जाओ,
रहो तुम पास इतना कि, मेरी हर साँस बन जाओ,
मैं चाहूँ टूट कर इतना, कि तुम मेरे अल्फाज़ बन जाओ।
 

मैं खोऊँ कुछ तुम में, कुछ तुम मुझमें खो जाओ,
मैं हूँ इक चाहत का दरिया, तुम इसका इष्ट प्रदेश बन जाओ।
झूठे ही सही, पर अपने हो, कुछ तो ख्वाब दिखा जाओ,
कि तुम साँसों में बस जाओ, कि तुम यादों में खो जाओ।
 

इस तन्हाई के आलम में, कभी तो मुझसे मिल जाओ,
कुछ मेरा, या अपना दर्द सुना जाओ।
इस बदरंग जमाने के, कुछ तो वर्ण बता जाओ,
कि तुम साँसों में बस जाओ, कि तुम यादों में खो जाओ।
 

अंजलि लेकर यादों की, तुम बंद पलकों संग आ जाओ,
लेकर लटों का घना खजाना, कजरारे नयन दिखा जाओ।
सर्द रात में कुड़ता है गात, रेशम सा हाथ छुआ जाओ,
कि तुम साँसों में बस जाओ, कि तुम यादों में खो जाओ।
 

प्रेम विरह में पागल ना होऊँ, इक जीवन गीत सुना जाओ,
डूबता सूरज हूँ तेरे दिन का, इक किरण तो दिखा जाओ।
तुम हो मेरी बस मेरी आकांक्षा, बस इक बार तो मुझसे कह जाओ,
कि तुम साँसों में बस जाओ, कि तुम यादों में खो जाओ।

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