सावन Aparna ghosh
सावन
Aparna ghoshझूम-झूम यूँ धरती गाती गीत रे,
जब धरा पर रिमझिम बरसे प्रीत रे।
धरती फिर हरित हो करे नवश्रृंगार रे,
नवीन कोपलें करे चहुँ ओर सत्कार रे,
इस नवीनता को सुनाए नवीन गीत रे,
जब धरा पर रिमझिम बरसे प्रीत रे।
सावन के झूले लग गए हर डाल पे,
थिरकती मेघा भी नृत्य के ताल पे,
नभ में हँसी के फव्वारों का संगीत रे,
जब धरा पर रिमझिम बरसे प्रीत रे।
तन मन भीगे फिर भी कैसी ये टीस रे,
प्रेम का मृदंग बाजे उच्च ताल सीस रे,
प्रीत के सावन में भीगे हर रीत रे,
जब धरा पर रिमझिम बरसे प्रीत रे।
आज श्याम संग राधा करे रास रे,
भक्ति सिंचित प्रेम भरे हर स्वास रे,
भक्ति खेले रास संग कृष्ण मीत रे,
जब धरा पर रिमझिम बरसे प्रीत रे।
झूम-झूम यूँ धरती गाती गीत रे,
जब धरा पर रिमझिम बरसे प्रीत रे।