जुस्तजू  Surya Pratap Singh

जुस्तजू

Surya Pratap Singh

जुस्तजू थी रंग-ए-महफिल की
तन्हायियों से वास्ता पड़ गया,
कुदरत ने कुछ इस कदर करवट ली
तन्हा रहने को मजबूर इन्सां हो गया।
 

भूल चुके थे हम अपनी जिन पद्धतियों को
कुदरत ने उसी से पुनः बावस्ता कर दिया,
फूला न समाता था इन्सां जिस आधुनिकता पर
कुदरत की इक करवट ने सभी को बौना कर दिया।

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