उपेक्षा  Anupama Ravindra Singh Thakur

उपेक्षा

Anupama Ravindra Singh Thakur

उदास और वीरान
उन आँखों में
केवल प्रतीक्षा है
अपने प्रियतम की,
जिसे भूख है
केवल धन की,
रात-रात भर बैठा है,
कहीं कोई ग्राहक
ना चला जाए,
मुट्ठी भर पैसों के पीछे
जाने कैसा दीवाना है।
 

इसकी आँखें चारों पहर
ताकती द्वार को हैं,
आँखों के नीचे
काले घेरे पड़े हैं,
मुद्रा कांति हीन है,
सारे ऐश-ओ-आराम हैं,
फिर भी मन बेचैन है।
 

जीवन समाप्ति का विचार
आता है कई बार,
पर उन्ही सूनी आँखों से
बेटे को निहारती बार-बार,
यह सोच अश्रु पोंछती,
नहीं मृत्यु का भी मुझे अधिकार।
 

अपने ही भाग्य से लड़ना मुझे है,
हर स्त्री की नियति यही है,
उपेक्षाओं का विष पीकर,
उर्मिला, मांडवी की तरह
विरह वेदना में जीना है।

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