सम्बन्धों में षड्यंत्र  Surya Pratap Singh

सम्बन्धों में षड्यंत्र

Surya Pratap Singh

सम्बन्धों में षड्यंत्र न करना
सम्बन्ध कोई है खेल नहीं,
दिगभ्रमित करे लाख तुमको जमाना
पर इसका कोई है मोल नहीं।
 

सम्भाल कर रखो सम्बन्धों को
सम्बन्ध बहुत अनमोल हैं,
सम्बन्ध नहीं यदि जीवन में
फिर जीवन का क्या मोल है।
 

सम्बन्धी न हों यदि दुनिया में
तो सबकुछ खाली-खाली है,
अर्जित कर लो चाहे सब कुछ
पर मन का कोना खाली है।
 

जल गया यदि दामन किसी दिन तुम्हारा
बढ़ के देगा कौन हौसला तुम्हें,
घिर जाओगे तुम जब तनहाईयों में
याद आएँगे हर वक्त अपने तुम्हें।
 

सुख के साथी बहुतेरे मिलेंगे तुम्हें
दुख का साथी न होगा तुम्हारा कोई,
घिर के आएगी जब काली घटा
बढ़ के सम्बन्ध ही देंगे सहारा तुम्हें।
 

सम्बन्धों की बारीक तुरपाई को
षड्यंत्रों से मत खोलिए,
आस्तीन के साँप बन
सम्बन्धों में बिष मत घोलिए।
 

जरा बैठ पहलु मे एक-दूसरे के
मन की गाँठों को खोलिए,
दिलों के दरमियाँ कुछ है यदि तो
निर्विकार हो सामने से बोलिए।

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