महामारी ABHISHEK KUMAR GUPTA
महामारी
ABHISHEK KUMAR GUPTAटूट रही है साँसें इंसान तड़प रहा,
जीने की बस आस में दर-दर भटक रहा।
कैसा कठिन समय यह आया
कोरोना का भय है छाया,
सूनी गालियाँ और चौबारे
बंद पड़े सब खुदा के द्वारे।
दुकानों पर ताले जड़े हैं
खाने के भी लाले पड़े हैं,
बाहर महामारी है डराती
अंदर लाचारी है रुलाती।
शहर छोड़कर लौट रहे सब गाँव को,
जाने कौन सी सजा मिली इंसान को।
टूट रही है साँसें इंसान..................
महामारी का रूप भयंकर
भीड़ लगी रुग्णालय के अंदर,
रोज मरीज हैं बढ़ते जाते
संसाधन कम पड़ते जाते।
कोई ऑक्सीजन को तड़पता
कोई इलाज के लिए भटकता,
मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारे
जन सेवा में लगे हैं सारे।
कोई व्यस्त है अपने मन की बात में,
जलने वाले जल रहे हैं शमशान में।
टूट रही है साँसें इंसान..................