जीवन मूल्य Anupama Ravindra Singh Thakur
जीवन मूल्य
Anupama Ravindra Singh Thakurगुरु और शिष्य के
संबंध रूपी वृक्ष को
लग रही है दीमक,
पैसों रूपी दीमक,
सोच रूपी दीमक।
बदल रहे हैं मायने
दोनों के रिश्तों के,
कहीं नहीं मिल रहा है
सच्चा गुरु
जो छात्रों को
राम और कृष्ण बना सके,
लुप्त हो रहे हैं
सच्चे शिष्य
जो गुरु के आदेश पर
काट सके अपना अंगूठा।
अब तो केवल
सुनवाई होती है
न्यायालयों में
शिक्षकों की
अगर छू लिया अंगूठे को,
जिस संस्कृति पर
नाज़ है हमें
वह खो गई है कहीं
मुगलों के आक्रमणों में अंग्रेजों की गुलामी में।
शेष रह गई केवल
धीटता, उद्दंडता और बेईमानी।
जीवन मूल्य
खूब फल फूल रहे हैं,
केवल पुस्तकों में,
अध्यापक की
कार्यशालाओं में।
अपने विचार साझा करें
गुरु-शिष्य का रिश्ता हमेशा आदर और सम्मान से परिपूर्ण रहा है। खासकर भारत के इतिहास में गुरु और शिष्य की कई जोड़ियों ने मिसाल कायम की है। समय के साथ गुरु और शिष्य की सोच में भी काफी बदलाव आया है। अब दोनों ही भविष्य को लेकर ज्यादा सजग हो गए हैं। वर्तमान में भले ही पैसा कमाने और करियर बनाने के चक्कर में गुरु खुद पर अधिक ध्यान देने लगे हैं लेकिन बच्चों के करियर बनाने का काम भी बखूबी निभा रहे हैं।