हिंदवासी हैं हम  Lakshmi Agarwal

हिंदवासी हैं हम

Lakshmi Agarwal

देश अपना सबसे प्यारा है
पूरी दुनिया में यह न्यारा है।
मंदिर का शंख है यहाँ तो
मस्जिद की अज़ान भी है,
नवरात्रि-होली दीवाली है
तो साथ में रमज़ान भी है।
 

हिंदवासी हैं हम
हिंदी हमारी बोली है,
पर अन्य भाषाओं की भी
संग में चलती यहाँ टोली है।
 

संस्कृति से लबालब यह धरा
है समृद्ध यहाँ की हर परंपरा,
राम-रहीम की है यह वसुधा
सर्वधर्म समभाव की यहाँ प्रथा,
सूर-मीरा-तुलसी बढ़ाते हमारा मान
तो जायसी-रसखान भी हैं गुणों की खान।
 

हिंदवासी हैं हम
हिंदी हमारी बोली,
प्रेमभाव से साथ मिलकर
मनाते हम ईद और होली।
 

बैसाखी की धूम कहीं तो
कहीं दीवाली की रंगोली,
साथ में हँसते-गाते ऐसे
जैसे हों आपसे में हमजोली,
डांडिया की धूम मची कहीं
तो कहीं है ग्वालों की टोली,
शादी-ब्याह में खूब हो रही
जीजा-साली की ठिठोली।
 

हिंदवासी हैं हम
हिंदी हमारी बोली,
गुझिया की मिठास यहाँ पर
पर कम मीठी नहीं पुरन पोली।
 

ललचाता हमें सरसों का साग
लुभाता-बुलाता आम का बाग,
मारवाड़ी भोजन के हैं अलग ठाट
तो चटपटी कम नहीं दिल्ली की चाट,
व्यंजनों से सजी है स्वादिष्ट थाली
चित्त को मोह रही फसलों की हरियाली।
 

हिंदवासी हैं हम
हिंदी हमारी बोली,
धरती माँ ने जैसे कितने मोतियों
को समेटकर अनोखी माला पिरो ली।
 

ओढ़े कोई यहाँ चुनर मतवाली धानी
तो कोई मातृभूमि पर कुरबान करे जवानी,
देश की सरहद पर खड़ा कोई बलिदानी
तो किसी ने सबकी भूख मिटाने की ठानी,
महान है जन्मभूमि के लिए इनकी कुरबानी
देश का किसान या हो वह सैनिक बलिदानी।
 

हिंदवासी हैं हम
हिंदी हमारी बोली,
रंग इतने बिखरे धरा पर
जैसे खेल रही प्रकृति होली।
 

प्रकृति ने भी जैसे
आज मिठास घोली,
हिंदवासी हैं हम
हिंदी हमारी बोली,
सजी कुछ यों धरती ऐसी
जैसे सजी हो दुल्हन की डोली,
बसी मन-मंदिर में मातृभूमि की
छवि अनोखी मनमोहक-भोली।
 

हिंदवासी हैं हम
हिंदी हमारी बोली,
प्रेम-सौहार्द में मिठास
यहाँ के कण-कण में घोली,
बार-बार जन्म हो इस धरा पर
यही कामना मैंने उर में सँजो ली।

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