दहेज  Lakshmi Agarwal

दहेज

Lakshmi Agarwal

समाज के लिए बहुत बड़ा अभिशाप है दहेज,
त्यागकर इस कुप्रथा को लें हम खुशियाँ सहेज।
नारी का संपूर्ण जीवन ही नर के लिए है वरदान,
समर्पण को उसके दें अपने जीवन में सम्मान।
 

मूल्य-संस्कारों का दहेज कभी भी ले नहीं स्थान,
क्यों न प्रेम से अपने दें उसके प्रेम का प्रतिदान,
चंद सिक्कों की खनक के लिए जीवन न करें वीरान।
 

अतृप्त लालसा का हो नहीं सकता कोई समाधान,
दहेज की खातिर जीवन अपना मत बनाओ श्मशान।
कुछ तो रखो अबोध संतान की खुशियों का भान,
मत छीनो अपने बच्चों और उनकी माँ की मुसकान।
 

सहेजती-सँवारती है जो हरदम तुम्हारा आशियाना,
तुम्हीं बताओ कहाँ ढूंढेगी वह खुशियों का ठिकाना।
गृहिणी के कर्ज का चुका नहीं सकेगा कभी तू मोल,
जीवन को उसके सोने-चांदी के पलड़े में मत तोल।
अच्छा जीवनसाथी ही है उपहार सबसे अनमोल,
महकाती घर-आँगन को हमेशा बिन लिए कोई मोल।
 

फिर क्या खुशियों पर नहीं उसका भी अधिकार है,
उसके बिना क्या अधूरा नहीं सबका घर-संसार है।
यह कैसा उसके निश्छल प्रेम-त्याग का प्रतिकार है,
क्या उसके हिस्से में सिर्फ और सिर्फ तिरस्कार है।
 

दहेज ही क्या पवित्र गठबंधन की महत्त्वपूर्ण रस्म है,
यदि नहीं, तो क्यों जीवन-खुशियाँ उसकी भस्म हैं।
क्या लोभ-संवरण को ही तुमने थामा उसका हाथ,
प्रणय-बंधन की क्या यही होती है असली सौगात।
 

साथ तुम्हारा पाकर बाबुल को भी भूली-बिसराई है,
क्या तुमने अर्धांगिनी का साथ देने की रसम निभाई है।
दहेज से ही नातेदारी तुम्हारी पत्नी आज भी पराई है,
बाबुल का अँगना छोड़ने की कीमत स्त्री ने चुकाई है।
 

खुश होती बहुत अरमानों की डोली जब उठती है,
इस बंधन-समर्पण की तो बहुत भारी बोली लगती है।
विवाह नहीं यहाँ तो प्रणय-बंधन का व्यापर चलता है,
रस्मों के नाम पर ठगी का खूब कारोबार फलता है।
 

बोली लगाते अपने घर से निकलने वाली बरात की,
पर भूल जाते क्यों कीमत एक निर्दोष के जज़्बात की?
जीवन भर भुगतती सजा न जाने किस अपराध की,
देख रही इंतज़ार आज भी खुशियों की बरसात की।
 

तो आओ आज मिलकर करते हैं हम एक अटूट प्रण,
संगिनी संग करेंगे केवल खुशियों-समृद्धि का ही वरण।
यह कुप्रथा नहीं कर पाएगी उसके सुख-चैन का हरण,
निभाएंगे सात फेरों पर अग्नि के सामने ली थी जो कसम।
करना होगा आज हमें दहेज जैसी कुप्रथाओं का तर्पण,
तभी महकेगा-चहकेगा खुशियों से सबका घर-आँगन।

अपने विचार साझा करें




1
ने पसंद किया
438
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com